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वह गाँव से बाहर आया और उसे एक जैन मुनि मिले । अपने जीवन की काली किताब को जस का तस खोलकर बता दी.... पाप शुद्धि के लिए चारित्र अंगीकार किया । तदन्तर दृढप्रहारी ने दृढ प्रतिज्ञा ली....जब तक दूसरे लोगों को मेरे पाप याद रहे......लोग मुझे मेरे पापों की याद दिलाते रहें, तब तक अन्न-पानी का सर्वथा त्याग... !
भीष्म प्रतिज्ञा वाले दृढप्रहारी मुनि गाँव के बाहर चारों दरवाजे पर एक-एक माह कायोत्सर्ग में खड़े रहते थे....। लोग उन्हें गाली देते..... पत्थरों से...... लाठी से .... मुट्ठी से मारते......मगर दृढप्रहारी मुनि सब कुछ सह लेते थे......अपूर्व क्षमा के साथ !!
इससे उन्हें शातावेदनीय कर्म बँधा।
अनुक्रम से चार महिने के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ ।
3. दया
मेघकुमार के जीव ने हाथी के भव में खरगोश की दया की.... शातावेदनीय कर्म बाँधा, अत: हाथी के भव में से सीधे श्रेणिक राजा के पुत्र मेघकुमार हुए .... ।
4. व्रतपालन
महाबल राजा ने सुंदर व्रतों का सुंदर पालन किया.....अतः शातावेदनीय बाँधकर देवलोक में गये.....!
5. शुभयोग
पडिलेहण आदि शुभयोगों से शातावेदनीय कर्म बँधता है .....।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 97
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