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दान देने की उत्तम रूचि थी... अतः मनुष्य आयु बाँधकर वह
शालीभद्र बना ।
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2. अल्प परिग्रह
जिसके पास परिग्रह कम हो..... और महापरिग्रह की भावना झंखना न हो।
3. अल्पकषाय
क्रोध आदि कषाय अत्यन्त अल्प हो....
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4. मध्यम गुण
विनय, सरलता, मृदुता, देव गुरु की पूजा, अतिथि सत्कार
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आदि ।
देवायुष्य कर्म बंध के हेतु
1. अविरति सम्यग्दर्शन
देव, गुरु एवं धर्म के ऊपर पूर्ण श्रद्धा..... अपार बहुमान..... अनन्य बहुमान आदि हो... जैसे कि देवपाल ! परमात्मा के दर्शन हुए, आठ-आठ दिन तक भूखा रह गया....!!
2. देशविरति
श्रावक के बारहव्रतों को धारण करना या उनमें से किसी एक को अंगीकार करना ।
बंदरवैद्य
देहाती गाँव में एक वैद्यराज थे। धंधा जोरों से चल रहा था। एक बार सद्गुरु का योग मिला। गुरुभगवंत की वाणी ने जादुई असर किया...... ... जीवन में परिवर्तन आया। विचार किया कि 'ओह ! मेरे इस धंधे में वनस्पति आदि की भयंकर हिंसा करनी
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 125
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