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प्रवचन-10 नामकर्म के भेद और बंध हेतु
आज के मंगल दिन शिविर की क्रमिक अध्ययन पद्धति को अनुलक्ष कर हमें नामकर्म के एक सौ तीन भेद संक्षेप में बुद्धिगोचर करने हैं.... उन पर सरसरी नजर दौड़ाते हुए विहंगावलोकन करना. है।
नामकर्म के मुख्य चार भेद हैं - (1) पिंड प्रकृति (2) प्रत्येक प्रकृति (3) बस दशक (4) स्थावर दशक । पिंडप्रकृति
नामकर्म की जिन प्रकृतियों के उत्तर भेद हो, उन्हें पिंडप्रकृति कहा जाता है। पिंडप्रकृति के गति आदि चौदह भेद हैं, जिनके उत्तर भेद पिचत्तर हैं। अब उनका वर्णन किया जा रहा है।
1. गतिनामकर्म जिसके उदय से जीव को नरकादि गति मिलती है....उसके चार भेद हैं.....
अ. नरकगतिनामकर्म- जिसके उदय से जीव को नरक गति मिलती है....
ब. तिर्यंचगतिनामकर्म- जिसके उदय से जीव को तिर्यंचगति मिलती है....
स. मनुष्यगतिनामकर्म- जिसके उदय से जीव को मनुष्यगति मिलती है....
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /128
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