Book Title: Re Karm Teri Gati Nyari
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 158
________________ 4. पशु आदि का मुँह बाँधना। भोजन करने में या वस्त्र पहनने में अंतराय करना....तथा धर्म क्रियाओं में आलस्य-प्रमाद करना....आदि अन्तराय कर्म के बंध हेतु हैं। अंजनासुंदी दुःखी क्यों हुई? जैनदर्शन कार्य कारण सिद्धांत थियरी में मानता है। कार्य है तो कारण होगा ही.... बाईस साल तक अंजना को पतिवियोग का दु:ख सहना पड़ा...तदुपरांत गर्भवती अंजना को सास ने एवं स्वयं के पिता ने घर से निकाल दिया....जंगल में अपार दु:ख सहना पड़ा। गुफा में ध्यानस्थ ज्ञानी भगवंत को जब अंजना की सखी वसंततालिका ने इस दु:ख का कारण पूछा। ज्ञानी भगवंत ने कहा है- 'कडाण कम्माण ण अस्थि मोक्खो...' कर्म किये हैं तो भुगतने ही पड़ेंगे।' ज्ञानी भुगते ज्ञान से मुरख भुगते होय' हँसता ते बाँध्या कर्म रोता ते नवि छूटे रे' इसलिये तो कहा है 'बंध समय चित्त चेतीये रे उदये शो संताप सलूणा....' इस प्रकार सान्त्वना समाधि देकर अंजना सुंदरी का पूर्वभव कह सुनाया। ___राजा की दो रानियाँ थी। एक का नाम लक्ष्मीवती और दूसरी का नाम कनकोदरी। लक्ष्मीवती अपार श्रद्धा और बहुमान के साथ परमात्मा की भक्ति - सेवा पूजा आदि करती थी.....अत: लोग उसकी प्रशंसा करते थे। कनकोदरी की कोई प्रशंसा नहीं करता था...चूँकि प्रशंसा के योग्य वह कुछ भी नहीं करती थी। बल्कि वह दिन रात लक्ष्मीवती की ईर्ष्या करती थी....मन ही मन जलभून कर राख हो जाती थी। ईष्या बहुत बुरी बला है। ईन्धि बनी हुई रे कर्म तेरी गति न्यारी..!! /157 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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