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मिथ्यात्व में उलझी हुई सुरसुंदरी बोली- 1. धन 2. यौवन 3. चतुरता 4. स्वस्थकाया और 5. मनपसंद स्नेही।
मयणा का गणित पुण्य को बढ़ाने वाला था। वहीं सुरसुंदरी का गणित पुण्य को सफाचट करने वाला था। सुरसुंदरी ने पूर्वभव में उपभोगान्तराय बाँधा हुआ था। अत: राजकुमार के साथ शादी हो गई तो भी दु:खी होना पड़ा। सुरसुंदरी अपने पति के साथ गाँव बाहर रूकी हुई थी। चोरों का हमला हुआ। सुरसुंदरी को राजमहल आदि राजशाही भुगतने को नहीं मिला। चोर उसे उठाकर ले गये और बब्बर देश में उसे बेच दी। वहाँ वह नाट्यमंडली में काम करने लगी। इधर मयणा की शादी राजा ने कुष्ठरोगी श्रीपाल के साथ कर दी। श्रीनवपद की आराधना से कुष्टरोग चला गया। राजऋद्धिसिद्धि मिली।
सुरसुंदरी को उपभोगान्तराय कर्म का उदय था। जबकि मयणासुंदरी को इस कर्म का उदय नहीं था।
5. वीर्यान्तराय कर्म के बंधहेतु धर्मक्रिया में अपनी शक्ति को छुपाये....आलस्य करें....तब वीर्यान्तराय कर्म बँधता है।
इस तरह कर्म के भेदों का वर्णन और कर्मबंध के विशेषहेतुओं का संक्षिप्त वर्णन पूरा हुआ।
विशेष जिज्ञासुओं से अनुरोध है कि वे गुरुगम से छ: कर्मग्रंथ, कम्मपयडि, पंचसंग्रह, खवगसेढी, उपशमनाकरण, कर्म सिद्धि मार्गणा द्वार विवरण, सत्ताविहाणं आदि ग्रंथों का सांगोपांग अध्ययन करें।
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रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /161
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