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3. नाराचसंघयण नामकर्म 4. अर्धनाराच नामकर्म 5. कीलिकासंघयण नामकर्म 6. छेवळूसंघयण नामकर्म
देव, नारक और एकेन्द्रिय को संघयण नामकर्म का उदय नहीं होता है। विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को छेवटुं संघयण नामकर्म का उदय होता है, अत: उन्हें छट्ठा संघयण है..........ऐसा कहा जाता है। ____ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार छ: संघयण होते हैं। पहला संघयण पुण्यप्रकृति है, दूसरे सभी पापप्रकृति है।
6. संस्थान नामकर्म जिस कर्म के उदय से जीव को शुभ अथवा अशुभ स्वरूप की आकृति मिलती है। उसके छ: भेद हैं। 1. समचतुरस्रसंस्थान नामकर्म
जिस कर्म के उदय से जीव को जिसमें चारों कोने समान हो, वैसा संस्थान मिले....अर्थात् पर्यंकासन से बैठने पर...
अ. दाहिने कंधे से बाएँ घुटने तक का अंतर ब. बाएँ कंधे से दाएँ घुटने तक का अंतर स. दोनों घुटनों के बीच का अंतर द. ललाट से दो घुटनों के मध्यभाग तक का अंतर
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /134
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