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लगाई....चंडकौशिक सर्प ने पाँव में दंश दिया तो भी भगवान महावीर ने क्षमा रखी....चिलाती पुत्र के शरीर को चींटियों ने छलनी बनाः दिया....झांझरिया ऋषि का राजा ने गला कटवा दिया....दृढप्रहारी की देह को लोगों ने मार-मार कर लहूलुहान कर दिया...। क्षमाधर्म का आश्रय किया।
दृढप्रहारी चोर साधक सिरमोर बना ..
दृढ़प्रहारी जैसा लूंखार डाकू, लूटेरा, चोर, साधकों का सिरमौर बन गया.....यह असंभव कैसे संभवित हुआ....? .
दृढप्रहारी एक भयंकर हत्यारा था। उसने कई स्त्री पुरुषों के खून किये थे। एक दिन एक गरीब ब्राह्मण के घर वह चोरी करने गया। गरीब के घर कहाँ सोना-चाँदी? वहाँ तो थी सिर्फ खीर ! दृढप्रहारी ने सोचा ....यही सही ! और वह झपटा....ज्योंहि उसने खीर उठाई, ब्राह्मण के बच्चों ने शोर मचाया। दृढप्रहारी और उसके साथियों ने जो बीच में आया उन्हें मार दिया।
दृढप्रहारी खीर झपटने लगा....ब्राह्मण ने रूकावट डाली तो दृढप्रहारी ने उसका गला काट डाला.....गाय सामने आई तो उसको मार डाली....ब्राह्मणी आई तो उसके पेट पर तलवार मारी....गर्भ में रहा हुआ बालक नीचे गिरा और तड़फ-तड़फ कर प्राण त्याग दिये.... अन्य छोटे बच्चे माँ की असमय मौत से विलाप करने लगे.....!
अपने हाथों गो-ब्राह्मण-स्त्री और भ्रूण, इन चारों की निर्मम हत्या देख...दृढप्रहारी का कलेजा काँप उठा.....बच्चों के करुण रूदन ने उसे झकझोर दिया।
रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /96
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