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आई....... जहाँ राग ज्यादा, वहाँ द्वेष ज्यादा' सुकोशल पर पंजा . मारा......तड़-तड़ नसें तोड़कर लोही-मांस चट-चट और चबचब कर आरोगने लगी...मुनि धर्मध्यान से शुक्लध्यान और शुक्लध्यान से केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में पहुँच गये... और इधर उसने मुनि का मुँह फाड़ा..... सोने के दाँत देखे......जातिस्मरण हुआ.....अपार पश्चात्ताप हुआ....
ओह ! धिक्कार हो मुझ पापिणी को....जिसने अपने ही पुत्र का खून पीया.....मांस खाया...! अनशन कर बाघिन देवलोक में गई। कीर्तिधर मुनि को भी केवलज्ञान हुआ....मोक्ष में पधारे।
2. ब्रह्मचर्य में दोष लगाना
रूपसेन के जीव ने आँख के पाप से ब्रह्मचर्य में दोष लगाया...तो उसे सर्प-हंस-हिरन आदि तिर्यंच के भव मिले....ब्ल्यू फिल्म...न्यूड फिल्म....एडल्ट पिक्चर्स और गंदी फिल्में (लगभग सभी फिल्में कही जा सकती है) फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा आँख के पाप से सने हुए युवकों ! सावधान बन जाओ....तिर्यंच योनि में आज के युग में तो और भी ज्यादा दु:ख है....
तिर्यंच बनो उतनी ही देर है.....सरकार ने योजना बना रखी है, अलग-अलग तौर-तरीकों से मारने की....मछली बनोगे तो मत्स्योद्याग में मरोगे....मुर्गी के अंडे बनोगे तो 'संडे हो या मंडे' का धूम प्रचार कर तुम्हारा अस्तित्व ही मिटा देंगे....!
अत: प्यारे नौजवानों ! अपने ही हाथों मरने के धंधों को छोड़ो...एक्ट्रेसो के फोटो जेब में से निकाल फैंको.....लड़कियों का पीछा करने की आवारागर्दी छोड़ो....
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /120
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