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अभ्यास न कराया होता तो आज आप 'काला अक्षर भैंस बराबर' ! इस 'रे कर्म ! तेरी गति न्यारी' पुस्तक को भी पढ़ नहीं पाते..... न सुबह उठकर परमात्मा के दर्शन करने जाते या किसी भी समाचार-पत्र को पढ़ पाते.........बिल्कुल गँवार कहलाते जंगली...अंगूठा छाप !!
यह सब उपकार माँ-बाप का है...उनका विनय-नमस्कार, सामने नहीं बोलना - धर्म में अबाधक ऐसी हर छोटी-मोटी आज्ञा पालन आदि करने से शातावेदनीय कर्म बंधता है।
अशातावेदनीय कर्म बंध हेतु शातावेदनीय बंध के हेतुओं से ठीक विपरीत अशातावेदनीय कर्मबंध के कारण हैं।
जैसे गुरु के प्रति तिरस्कार, क्रोध, निर्दयता, व्रत का खंडन, अशुभयोग, कषायों की पराधीनता, कृपणता, माता-पिता के प्रति तिरस्कार आदि।
__ माता-पिता को घर से निकालने वाले भयंकर अशातावदनीय कर्म बान्धते हैं। आज अपने देश में वृद्धाश्रम बढ़ते जा रहे हैं, हाऊस फूल चल रहे हैं, यह इस देश के सांस्कृतिक अधःपतन की निशानी है। - धरती मैया को पूछा गया- क्या पर्वतों के भार से दबकर तुम फटती हो ? तब उसने जवाब दिया- मुझे पहाड़ों का भार बिल्कुल नहीं लगता....मैं तो तब फटती हूँ जब इस दुनिया में विश्वासघाती
और कृतघ्न लोग बढ़ जाते हैं ! वो मेरे से सहन नहीं होता ! आज घरों में कई लोग कुत्ते पालते हैं, बिल्ली पालते हैं....और जिसने उन्हें
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /101
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