________________
1. अनंतानुबंधी क्रोध पहाड़ में पड़ी दरार के समान है, जो दुष्पूर है, ऐसे क्रोध को अनंतानुबंधी कहते हैं। ___ 2. अनंतानुबंधी मान पत्थर के स्तम्भ के समान है। जो कभी झुक नहीं सकता....मुड़ नहीं सकता...उसी तरह अनंतानुबंधी मान वाला इंसान कभी नम्र नहीं बनता है।
3. अनंतानुबंधी माया बांस की जड़ों के समान है...जो कभी सीधी नहीं होती है। उसी तरह अनंतानुबंधी माया वाला व्यक्ति कभी सरल नहीं होता है।
___4. अनंतानुबंधी लोभ मजीठ के रंग के समान है...जो अमिट रहता है। अनंतानुबंधी लोभ वाले जीव की भी लालच कभी मिटती नहीं है। शेयर-सट्टा बाजार वाले लोभ के चक्कर में कैसे औंधे मुँह गिरते हैं ? यह सर्व विदित है। '
अनंतानुबंधी कषाय सम्यक्त्व के घातक हैं....अर्थात् दिनरात सा उन दोनों के बीच वैर है....अनंतानुबंधी कषाय है, वहाँ सम्यक्त्व नहीं....और सम्यक्त्व है वहाँ अनंतानुबंधी कषाय नहीं...
अनंतानुबंधी कषाय से संसार का अनुबंध पड़ता है.संसार का चक्कर बढ़ता है। चारअप्रत्याख्यानावरणकषाय
जिसका उदय चार महिने से अधिक और वर्ष के अंदरअंदर समाप्त हो जाय....उसे अप्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं।
अनंतानुबंधी से इसकी मात्रा अल्प होती है। इस कषाय से देशविरति का घात होता है। उसके चार भेद हैं।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /106
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org