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1. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध जमीन में पड़ी दरार के समान है। बारह महिनों में बारिश आने पर वह पूरी हो जाती है। उसी तरह अप्रत्याख्यानावरण क्रोध ज्यादा से ज्यादा बारह महिने तक ही रहता है। अर्थात् बारह महिने के अंदर-अंदर यह क्रोध समाप्त हो जाता है।
2. अप्रत्याख्यानावरण मान हड्डियों के स्तंभ के समान है। 3. अप्रत्याख्यानावरण माया भेड़ के सींग के समान है। 4. अप्रत्याख्यानावरण लोभ बैल की गाड़ी की मली जैसे
चार प्रत्याख्यानावरण कषाय जिसका उदय चार महिने तक रहता है। उसे प्रत्याख्यानावरण कषाय कहते है। अर्थात् पन्द्रह दिन से ऊपर रहे और चार महिने के अंदर-अंदर समाप्त हो जाय। 1. प्रत्याख्यानावरण क्रोध बालू में पड़ी हुई रेखा के
समान... 2. प्रत्याख्यानावरण मान काठ का थंभा... 3. प्रत्याख्यानावरण माया गोमूत्रिका जैसी....
4. प्रत्याख्यानावरण लोभ काजल के रंग जैसा.... चारसंज्वलनकषाय
1. संज्वलन क्रोध : पानी में पड़ी दरार..रेखा के समान 2. संज्वलनमान : बेंत की छड़ी के समान 3. संज्वलन माया : बांस की लकड़ी के छाला के समान 4. संज्वलन लोभ : हल्दी के रंग जैसा...
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /107
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