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अपने मामा के घर गया तो वहाँ रात को चोरों ने धावा बोला और माल-सामान साफ कर दिया। परदेश जाकर सेठ के यहाँ नौकरी के लिये रहा तो एक दिन सेठ की दुकान में आग लग गई। सेठ ने निष्पुण्यक को निकाल दिया। समुद्री रास्ते से अपने घर लौट रहा था कि जहाज डूब गया। बड़ी मुश्किल से एक लकड़ी का सहारा लेकर तैरते-तैरते जान बचाई।
गाँव के ठाकुर के वहाँ उसने अपना आना-जाना बढ़ा दिया तो ठाकुर के घर चोरों ने हमला किया और माल-सामान लूट कर ठाकुर को जान से खत्म कर डाला। निष्पुण्यक को उठाकर पल्ली में ले गये, तो दूसरे पल्लीपति ने धावा बोलकर इस पल्ली को सफाचट कर दी.... वापिस निष्पुण्यक को मार भगाया गया।
एक बार उसने इक्कीस उपवास कर एक यक्ष की आराधना की। यक्ष प्रसन्न हुआ। उसने कहा- 'शाम के समय मोर नृत्य करेगा...एक सुवर्ण पिच्छा ले लेना। इस तरह निष्पुण्यक ने नौ सौ पिच्छे इकट्ठे किये। सौ बाकी थे, धैर्य नष्ट हो गया.....सोचा..... एक-एक कर सौ कब पूरे होंगे ? एक साथ एक सौ पिच्छे क्यों न खींच लूँ ? उसने अपनी मूर्खता से खींचने की कोशिश की.....मोर भी गायब और नौ सौ पिच्छे भी गायब ! बेचारा अभागिया ! बहुत रोया....! ___एक बार ज्ञानी गुरु मिले। ज्ञानी गुरु ने पूर्वभव का वृतांत्त कह सुनाया। सुनकर निष्पुण्यक को घोर पश्चात्ताप हुआ और पाप की शुद्धि (12.30 रुपये के देवद्रव्य से आय का पाप सागर सेठ के भव में किया था) के लिए आलोचना माँगी। गुरु भगवंत ने कहा 'हजार गुना अर्थात् 12.30 हजार रुपये देवद्रव्य में अर्पित करने पर शुद्धि होगी। जब तक उतना द्रव्य भरपाई नहीं हुआ, तब तक भोजन
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /113
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