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7. माता स्वयं तेल की मालिश करे तो बच्चा रोगिष्ट बनता है। 8. माँ रोती है तो बच्चा टेढी आँख वाला बनता है।
इनमें से एक भी दोष...खामी हमारी काया में नहीं है....बल्कि वह सर्वांग सुंदर है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारी माँ ने कितना संयम रखा था। पिता का भी अनहद उपकार है। माँ के दोहले की पूर्ति धन के बल पिता ही तो करते हैं। जिससे माता की निराशा गर्भ पर अपना बुरा प्रभाव न डाले।
जन्म देने के बाद भी माँ ने कैसी-कैसी सावधानी रखी। दिन-रात आपकी चिंता उसे सताती थी....कभी प्यास....कभी भूख....कभी लेटरीन....कभी पेशाब.... आपकी हर फरमाईश की पूर्ति माँ खड़े पाँव करती है।
(न करे तो आप कहाँ चुप बैठने वाले थे..! आप तो अपना राग अलापने लगते....माँ को तंग कर देते)
और इतना ही नहीं....
आप छोटे थे....आप असहाय थे......अपनी रक्षा आप स्वयं नहीं कर पाते थे...माँ Body Guard बनी, उसने अपनी ड्यूटी Day and Night रखी....वरना.....
कौआ आकर अगर आँखों में चोंच मारता तो आज किसी ब्रेइल लिपि के चक्कर में होते.....रोड़ पर असहाय चलने वाले अंध सूरदास कहलाते....
बिल्ली आकर कान खा जाती तो सूरत देखने जैसी होती....होंठ खा जाती तो मुँह से शब्द नहीं निकलते....परमात्मा-पिता-महावीर शब्द बोल नहीं पाते.....
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /100
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