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वल्कलचीरी को पडिलेहण करते हुए जातिस्मरण हुआ और केवलज्ञान भी हो गया।
6. क्रोधादि कषायों के ऊपर विजय
क्रोध आदि आंतर शत्रु हैं। उन पर विजय प्राप्त करने से अवंतिसुकुमाल की तरह.......शातावेदनीय का बँध पड़ता है। गजसुकुमाल भी क्रोधादि विजय कर केवलज्ञान को पाये।
7. दान शालिभद्र के जीव संगम ने मुनि को निर्दोष गोचरी वोहरा कर सुपात्रदान दिया और शातावेदनीय कर्म बाँधा....निन्यानवें पेटियाँ रोज देवलोक से उतरने लगी। अनुक्रम से दीक्षा लेकर साधना कर अनुत्तर में पधारे। महाविदेह से मोक्ष जायेंगे।
8. धर्म में दृढ़ता अर्जुनमाली का घोर उपसर्ग था, फिर भी युवक सुदर्शन चलित नहीं हुआ....! अपने दिल में अखंड आस्था का दीप संजोये वह भगवान महावीर स्वामी की वाणी सुनने के लिए निकल पड़ा....। सामने मुद्गर उछालता हुआ अर्जुनमाली आया। धर्म में दृढ आस्था वाला सुदर्शन काउसग्ग में खड़ा रह गया..... अर्जुनमाली की देह में रहा हुआ यक्ष नौ-दो ग्यारह हो गया....। धर्म में दृढता धारण करते वक्त सुदर्शन ने शातावेदनीय कर्म बाँधा।
9. अकाम निर्जरा सहन करके कर्म क्षय करने की इच्छा न हो...अर्थात् अनिच्छा से भी जो समभावपूर्वक कष्ट सहन करे, उसे भी शातावेदनीय कर्म
रे कर्म तेरी गति न्यारी...! /98
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