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2.अशातावेदनीय
__ जिस कर्म के उदय से जीव को रोग का भोग बनना पड़ता है....पीड़ा सहनी पड़ती है...इन्द्रिय आदि से उत्पन्न होने वाले दु:ख को भुगतना पड़ता है.....जैसे कि नरक के भव में इत्यादि।
वेदनीय कर्म के बँधहेतु गुरुभक्ति आदि से शातावेदनीय कर्म का बंध होता है।
1.गुरु भक्ति गुरु भगवंत की सेवा-वैयावच्च करनी....गुरु के प्रति समर्पण, सद्भाव, सम्मान और बहुमान भाव रखना जैसे गौतमस्वामी ने अपने गुरु त्रिलोकपति महावीरदेव के प्रति रखा था। गुरु भक्ति से शातावेदनीय का बंध होता है।
2. क्षमा गाली का जवाब गोली से....ईंट का जवाब पत्थर से....लात का जवाब लाठी से....और बात का जवाब बम से दिया जाना, मानव मन की बिमारी का सूचक है....
'बात-बात में बम अब बरसता है। पानी महँगा और खून सस्ता है। जीओ और जीने दो भूल गएआज महावीर की आवश्यकता है।'
कोई गाली दे....या पत्थर से मारे या लाठी से प्रहार करे तो भी क्षमा रखना...चूँकि क्षमा रखना...यह वीरों का भूषण है, 'क्षमा वीरस्य भूषणम्' इस गुण पर शास्त्रों में कई दृष्टांत है। कान में कीलें
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /95
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