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8. प्रचला-प्रचला - जिसके उदय में आने पर चलते-चलते नींद आए, उसे प्रचला-प्रचला दर्शनावरण कहते हैं जैसे- घोड़ा।
9. स्त्यानर्धि- जिसके उदय में आने पर दिन में सोचा हुआ कठिनतम कार्य भी नींद में करले उसे स्त्यानर्द्धि (थीणद्धि) दर्शनावरण कहते हैं। इस अवस्था में प्रथम संघयण वाले को अर्द्धचक्री यानि वासुदेव....उसका आधा बल होता है। अंतिम संघयण वाले व्यक्ति को अन्य व्यक्ति की अपेक्षा दुगुनी या तिगुनी ताकत होती है।
दर्शनावरण कर्म-बंध के कारण
ज्ञानावरण कर्मबंध के जो कारण बताये गये हैं, वे ही दर्शनावरणीय कर्म के भी है। सिर्फ इतना विशेष यहाँ समझना है कि, यहाँ दर्शन और दर्शनीका घात होता है और वहाँ ज्ञान और ज्ञानी का।
रेकर्म तेरी गति न्यारी...!! /93
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