________________
लड़के बड़े हुए। शादी की बात चली। योग्य कन्याओं की खोजबीन शुरू हुई। कोई अपनी लड़की अनपढ़-गँवार को देना नहीं चाहता था।
सेठ ने सेठानी को डाँटा...यह सब तुम्हारी ही करतूत है। 'तुमने बच्चों को उल्टा ज्ञान दिया...उसी का परिणाम है कि अब अपने बच्चों को कोई लड़की देने को तैयार नहीं है.....लड़के अनब्याहे रहेंगे.....इस अनर्थ के मूल में तुम्हारा ही हाथ है।'
__ सुंदरी से कटूवचन सहन नहीं हुए और वह अपना बचाव करते हुए बोली- 'पुत्र का ध्यान रखने का काम माता का नहीं, पिता का होता है।' ___'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' की तर्ज पर पर अपनी ही पत्नी द्वारा आरोप लगाने से सेठजी उद्वेलित हो उठे और क्रोधान्ध बनकर सुंदरी के सिर पर पत्थर से प्रहार किया। पत्थर के प्रहार से सुंदरी तड़फ-तड़फ कर मर गई। सुंदरी का जीव सिंहदास नामक सेठ के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम गुणमंजरी रखा। पूर्वभव के कर्म से वह जन्म से ही गूंगी और रोगयुक्त थी। सोलहवाँ साल लगा....यौवन देह से झलक रहा था....मगर उसके साथ कोई शादी करने को तैयार नहीं था। ___ एक दिन उद्यान में श्रीविजयसेनसूरि गुरुभगवंत पधारे। पिता के साथ गुणमंजरी भी देशना सुनने के लिये गई... | गुरु भगवंत के मुँह से अपना पूर्वभव और ज्ञानविराधना की बातें सुनकर उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। गुणमंजरी अपार पश्चात्ताप करने लगी। ओह ! मूढ ऐसी मैंने ज्ञानविराधना कर कितनी बड़ी भारी भूल की। ज्ञानावरणकर्म क्षय का उपाय पूछने पर गुरु भगवंत ने ज्ञान-पंचमी की आराधना बताई। तदनुसार गुणमंजरी ने श्रद्धापूर्वक आराधना
रे कर्म तेरी गति न्यारी..! /89
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org