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ज्ञानवरणवदर्शनावरण कर्मकेबन्धके कारण
वरदत्तकुमार वसुसार और वसुदेव नामक दो भाईयों ने वैराग्य पाकर दीक्षा ली। वसुदेव छोटा था मगर मेधावी था....अत: सिद्धांतों का पारगामी बन गया...और पाँच सौ साधुओं को पढ़ाने लगा....अनुक्रम से वसुदेव आचार्य बने।
एक दिन रात को सोने का समय हो गया था। फिर भी साधु एक-एक कर आते-जाते थे....प्रश्न पूछते थे। अत: वसुदेव आचार्य को अपने ज्ञान पर एकदम गुस्सा आ गया 'ओह ! मैं शास्त्रों का ज्ञाता बना। इसीलिये मुझे पूछ-पूछ कर तंग करते हैं न ! मेरा बड़ा
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 86
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