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चाहिये, क्योंकि निश्चयनय उन्हें सिद्ध रूप बताता है। A Complete equlibirium सही संतुलन खड़ा हो जाता है। छूआछूत का शब्द आते ही आज के बुद्धिजीवी और नेताओं को मानो साँप सूँघ जाता है। भारतीय संस्कृति में जो परापूर्व काल से यह व्यवस्था थी, उसके पीछे कारण था। छूते नहीं थे, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि आप उसका तिरस्कार करो।
इस्लाम, ख्रिस्ती, हिन्दू, जैन आदि सभी धर्मों ने M.C. मंथली कोर्स- मासिक धर्म - ऋतुकाल में तीन दिन तक सगी माँजननी, जंनेता, बहन, भावज आदि प्रत्येक नारी को अछूतअस्पृश्य माना है, तो इसका मतलब क्या यह है कि माँ-बहिन धिक्कार के पात्र सिद्ध हुई ?
शास्त्रों ने और संस्कृति ने जिन-जिन मर्यादाओं को बाँधी है, उनमें पूर्ण वैज्ञानिकता रही हुई है। (इस हेतु पढिये, अनुवादक की पुस्तिका 'बचाओ ... बचाओ !!' ) इसलिये बुद्धिजीवियों को और आज के देश के मांधाताओं को भारतीय संस्कृति और धर्म को सर आँखों पर उठाकर पुनर्विचार करना पड़ेगा... सेड्यूल कॉस्ट नाम को जितना आज जगजाहिर किया गया है, उतना तो गत हजार साल में भी नहीं किया गया था.. .....उस वक्त उनके पास जो सुख था वह इन पचास सालों में उन्हें मिल नहीं पाया है.........उनका बाप-दादाओं का जो आरक्षित धंधा था उसे तो छीन लिया और नया आरक्षण नाम का भूत पैदा कर दिया और नये शिक्षित बेरोजगारों की बाढ़ खड़ी कर दी..... । आरक्षण के नाम जिसको Nill के बराबर परसेंटेज आये हों....उसे जनजीवन रक्षण (भक्षण ? ) हेतु डॉक्टर बना दिया जाता है, इंजीनियर बना दिया जाता है.....क्या हालत होगी ?
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रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 72
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