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प्रवचन-5 ज्ञानाबरण कर्म के भेद
और बंधहेतु कर्म के आठ भेद और उनकी विकृतियों का विहंगावलोकन हम कर चुके हैं।
जगत में जिसे कर्मवाद का तलस्पर्शी या थोड़ा-बहुत भी ज्ञान हो तो वह कतई दु:खी नहीं हो सकता। भीषण विपदाओं से घिर जाय या बेशुमार सम्पदाओं से सुसज्जित हो जाय.... तो भी वह अपना मानसिक संतुलन सही रख सकेगा।
विपदाएँ एवं आपदाएँ उसे सत्यमार्ग से च्युत नहीं कर पायेगी और न ही उसे निराशा की गर्त में धकेल सकेगी। कर्मवाद के बूते वह विपदाओं को हँसते मुँह सहना सीख जाता है। इससे विपरीत जो कर्मवाद से अनभिज्ञ है, वह हर दूसरी-तीसरी बात को लेकर दु:खी-दु:खी हो जाता है। - अपने यहाँ 'कर्मवाद से सांत्वना और समाधि' के विषय को लेकर कामलक्ष्मी का दृष्टांत आता है। . कामलक्ष्मी की रामकहानी :: नगर के चौराहे पर दो स्त्रियाँ मस्ती से चल रही थी। पीछे से भागो... भागो.... 'पागल हाथी !' की चीख सुनाई दी। हाथी से बचने के लिये दोनों हड़बड़ा कर भागी तो दोनों के सिर से घड़े गिर पड़े...और चकनाचूर हो गये। पानी का मटका फूटा वह रो रही थी
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /75
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