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और दही का मटका फूटा वह हँस रही थी। राज्य का मंत्री पास से ही गुजर रहा था। दृश्य देखा और उसे बड़ा अचरज हुआ।
पानी वाली को पूछा तो वह बोली 'सास डाँटेगी-फटकारेगी अत: रो रही हूँ।' नया मटका दिला दिया, चलो छुट्टी ! अब वह मुड़ा दही वाली अहीरन की ओर....'बहिनजी ! आप क्यों हँस दी?' वह बोली 'मंत्रीश्वर ! मेरी कहानी लंबी है...मैं किस-किस को रोऊँ ? मेरे जीवन में एक से बढ़कर एक रोने के किस्से हुए हैं....अब तो मेरे आँसू ही सूख गये हैं। यदि आपको समय हो तो पासवाले किसी बगीचे में चलिये, फिर...'
मंत्री को इस रहस्यमयी बात में दिलचस्पी जगी। उस स्त्री ने अपनी आत्मकथा इस तरह सुनाई
'मैं एक अभागिन औरत हूँ....मैंने अपने जीवन में हर धूपछाँव को देखी है....और मैं जीवन की हर टेडी-मेढ़ी पगडंडियों से गुजरी हूँ....वैसे मेरी काया....ब्राह्मण माता-पिता से बनी है....मेरा नाम कामलक्ष्मी है। यौवन के दलहीज पर पग रखते ही माँ-बाप ने मेरी शादी लक्ष्मीतिलक नगर के वेदसार ब्राह्मण के साथ की...'
यह सुनते ही मंत्री चौंका....चूँकि उसके पिता का नाम भी वेदसार ही था...और माँ का नाम कामलक्ष्मी !!
'भाग्य हमारा रूठा हुआ था... | एक दिन मैं नगरी के बाहर पानी भरने के लिये गई... कि अचानक शत्रु सैन्य ने हमारी नगरी पर आक्रमण कर दिया। नगरी के दरवाजे बंद हो गये। मैं बाहर ही नि:सहाय खड़ी रही । शत्रु के सैनिकों ने मुझे घर दबोचा । बंदी बनाकर राजा के समक्ष खड़ी कर दी। मेरा सुंदर रूप देख, वह राजा मुझ पर मोहित हो गया। उसने मुझे अपनी पट्टरानी बना दी।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /76
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