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के चंगुल में न फंसकर....बातों में न आकर उनसे बचकर चलना चाहिये। कोई कहता है पद्मावती देवी आती है...कोई कहता है अंबिका देवी आती है....कोई कहता है भैरवजी आते हैं.... आदिआदि। मानो उन देवी-देवताओं को और कोई अन्य कार्य ही नहीं हो । याद रखिये...वास्तविक बहुत कम होते हैं....ज्यादातर लोगों को उल्लू बनाने का धंधा चलता है....भोले लोग फँसे बिना नहीं रहते है...... दस में से एक का काम पुण्यवश अच्छा हो जाता है तो बस....प्रचार का बाजार गर्म हो जाता है....ऐसे धोखेबाजों से हमेंशा सावधान रहिये। यदि सच है तो तीर्थरक्षा का काम क्या कम है ?
प्रश्न - आयुष्यकर्म कब बँधता है ?
उत्तर - देव और नारकी का अगले भव का आयुष्य छ: माह की आयु शेष रहने पर बँधता है। पंचेन्द्रिय संज्ञी मनुष्य और तिर्यंच की आयु निम्न रूप से बँधती है।
वर्तमान भव की निश्चित आयु को तीन भागों में बाँट दीजिये। उसमें से दो भाग बीत जाने पर शेष एक भाग में अगले भव की आयु बँध सकती है....और यदि उस वक्त ऐसे परिणाम न आये हो तो उस एक भाग को भी तीन भागों में बाँट दीजिये। उनमें से दो भाग बीत जाने पर शेष भाग में आयु बँधती है। यूँ करते-करते अंतिम अन्तर्मुहूर्त में तो आयु बँधेगी ही।
___ कल्पना से हम देखते हैं तो....किसी व्यक्तिका वर्तमान भव का आयुष्य नब्बे वर्ष का है तो साठ वर्ष बीत जाने पर नये - अगले भव का आयुष्य बँध सकता है। यदि उस समय न बँधे तो शेष तीस वर्ष के दो भाग यानि बीस साल = 2/3 बीत जाने पर बँधेगा।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /66
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