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अर्थात् पूरी आयु नब्बे की अपेक्षा से 80 साल बीत जाने पर आयुष्य बँधेगा। ___ उस वक्त भी न बँधे तो शेष दस वर्ष के भी दो भाग बीत जाने पर....यूँ करते-करते अंतिम अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर तो अवश्य बँधेगा ही। ___ जैन धर्म में दूज, पंचमी, अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा आदि पर्वतिथियों की विशेष महत्ता देखी जाती है। यथाशक्ति तप, जप, ब्रह्मचर्य, दया, दानादि धर्मकृत्यों में प्रवृत्ति देखी जाती है, कारण क्या ? यही कि अगले भव की आयु प्राय: तिथि के दिन बँधती है और चूँकि आयु संपूर्ण जीवन में सिर्फ एक ही बार बँधती है। अत: तदर्थ विशेष जागृति पर जोर दिया जाता है। इस तथ्य को मद्देनजर रखते हुए पर्व-तिथि के दिन विशेष आराधना-साधना करनी चाहिये। जिससे हमारी सद्गति हो। चूँकि आयुष्य बाँधते समय शुभ भाव चल रहे हो तो शुभगति का आयुष्य बँधता है। तिथियाँ भी देखिये ! हर तीसरे दिन आती है।
प्रश्न - उपरोक्त गणित से तो यह लगता है कि आयुष्य का 213, 1/3 आदि बातें सिर्फ ज्ञानी ही जान सकते हैं? . - उत्तर - बिल्कुल सच बात है....तभी तो गौतमस्वामी जैसे चौदहपूर्वधर....बारह अंग के धारक को भगवान महावीर स्वामी कहते हैं... समयं गोयमा ! मा पमायए!' एक समय का भी प्रमाद मत कर.. खणं जाणाहि पंडिए!' क्षण को समझने वाला ही पंडित है.... | विचार कीजिये, पलक झपकते ही असंख्यात समय निकल जाते हैं....और उधर भगवान कहते हैं...कि एक समय का भी प्रमाद मत कर ! सोचने जैसी बात है, ऐसे एक नहीं हम तो अनेक
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /67
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