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तो कभी काम...कभी मान....तो कभी माया....! कभी शोक....तो कभी हास्य....जी में आये वैसे मानो नचाता है। अत: सर्वप्रथम तो सुरंग खोद कर इस कर्म को चकनाचूर कर देना चाहिये। इसकी धज्जियाँ उड़ानी चाहिये।
इस मोहनीय कर्म ने तो विश्व के मांधाताओं को भी भिखारी-सी हालत में पटक दिया। उन्हें अपना लटू बना दिया...और फिर दुर्गति में भेज दिया।
'कम्माण मोहणिज्जं' मोहनीयकर्म को जीतना अत्यन्त ही दुष्कर है...एवरेस्ट की चोटी पर पाँव रखना सरल है, परन्तु मोहनीय कर्म को वश करना कठिन है। जब तक उस पर विजय प्राप्त नहीं किया जाता तब तक आध्यात्मिक विकास संभव नहीं ! | and My और I am something के भाव पैदा करने वाला भी यही कर्म है। ___मोहनीयकर्म से टक्कर लेकर उसे नेस्तनाबूद कर उस पर संपूर्ण विजय प्राप्त करने वाले झांझरिया ऋषि का जीवन हम सभी के लिये प्रेरणास्पद है। झांझरियाऋषि
प्रतिष्ठानपुर नगर के राजा मकरध्वज का पुत्र राजकुमार मदन ब्रह्म....वैराग्य वासित हो दीक्षा के लिये उत्सुक हो उठा।
धूमधाम से दीक्षा लेकर ज्ञान-ध्यान और तप-संयम-साधना में लीन रहने लगे। मासक्षमणादि तप से अपनी काया को सूखीलकड़ी जैसा श्याम बना दिया। ग्रामानुग्राम विचरते हुए वे त्रंबावती आए....गोचरी के लिये गाँव में गये।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /34
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