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कोटा-कोटी सागरोपम....और कम से कम वेदनीयकर्म का बारह मुहूर्त और शेष तीन का अन्तर्मुहूर्त होता है....मोहनीयकर्म का ज्यादा से ज्यादा स्थितिबंध सित्तर कोटा-कोटी सागरोपम और कम से कम अन्तर्मुहूर्त होता है।
नाम और गोत्रकर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोकोसा (कोटाकोटी सागरोपम) और जघन्य से आठ मुहूर्त।
आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम और जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त होती है।
दृष्टांत- कोई लड्डू पन्द्रह दिन तक बिगड़ता नहीं है....कोई बीस दिन तक, तो कोई महीने तक भी नहीं बिगड़ता है।
इस प्रकार जितने समय तक आत्मा के साथ कर्म दूध-शक्कर की तरह एकमेक होकर रहे उसे स्थिति बंध कहते हैं।
3. रसबंध
आत्मा के साथ जब कार्मणवर्गणा जुड़ती है....तब उसमें कम या ज्यादा फल देने की शक्ति उत्पन्न होती है, उसे रसबंध कहते हैं। जैसे लड्डू में कम या ज्यादा शक्कर होती है, तो उसमें कम या ज्यादा मिठास होती है।
..शुभ कर्म का रस शुभ फल देता है। वह ईख के रस के समान है। अशुभ कर्म का रस अशुभ फल देता है। वह नीम के रस के समान है।
___ 1. एक ठाणिया रस बँध - ईख अथवा नीम के स्वाभाविक रस के समान कर्म का एक ठाणिया रस बँध होता है।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /47
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