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भी होता है। जैसे कि अर्जुनमाली के शरीर में देव प्रवेश कर गया था। मगर आजकल कई ढोंग - ढकोसले धत्तींग भी होते हैं अर्थात् मस्तिष्क की कोरी उपज अवास्तविक बातें भी होती हैं।
मातृभक्त युवक
राजस्थान के ग्राम्यप्रदेश में यह घटना घटित हुई थी। पिता का अकाल अवसान हो गया। माँ ने अत्यन्त कष्ट पूर्वक बच्चे को बड़ा किया। इधर माँ का वात्सल्य अपार था तो उधर पुत्र की भक्ति भी अमाप थी । युवावस्था में आते ही शादी हुई। बहू जरा तेज तर्रार थी। उसका मिजाज अलग था ।
वृद्ध माता के उत्तम संस्कारों को वह पचा नहीं सकी और अपनी मनमानी न होती देख उसने एक तरकीब खोज निकाली, क्योंकि मातृभक्त पति उसकी एक नहीं सुनता था।
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रविवार का दिन था। बहू घूमने लगी..... ऽऽऽ.....जीव लेकर जाऊँगी....जीव लेकर जाऊँगी..... मेरी मंशा पूरी करो...' युवक ने सोचा कि शायद कोई डायन लग गई लगती है। उसने तुरंत उसकी अंगुली पकड़ी और पूछा- 'बोल तू कौन है ? और किसलिये आई है ? बहू जवाब में प्रश्नों के उत्तर देते हुए आवेश में हिलते हुए बोली....' तुम्हारी माँ का सिर मुंडाओ.... मुँह पर कालिख पोतो.... और घूँघट निकलवाकर मेरे सामने नचाओ...मैं अगले रविवार वापस आऊँगी, यदि उस वक्त मेरी मंशा पूरी नहीं की तो जीव लेकर जाऊँगी...जीव लेकर जाऊँगी...' यूँ कहते हुए वह बेहोश होने का ढोंग कर गिर पड़ी।
मातृभक्त युवक समझ गया कि दाल में काला है... यह सब मेरी माँ को अपमानित करने का स्वाँग है.....! 'ईंट का जवाब पत्थर
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 63
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