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चाहे तीर्थंकर परमात्मा का जीव हो या छ: खंड का मालिक चक्रवर्ती ..... राजा हो या रंक...... सभी के लिये कर्म भुगतने का न्याय समान है। इसीलिये सभी आत्माओं को कर्मबँध के वक्त सविशेष ध्यान रखना चाहिये। जागृत रहना चाहिये।
गुनाह किया किसी दूसरे ने और फल भुगते कोई और ! यानि पोपाबाई को सजा मिली! पोपाबाई के राज में ऐसी गैर बात हो सकती है, मगर कर्म सिद्धांत में ऐसी अंधाधुंधी अर्थहीन बात नहीं हो सकती। जिसने पाप किया, उसे भुगतना ही पड़ेगा ।
कर्म की प्रकृत्तियाँ और उससे होने वाली विकृतियों की विवेचना अगले प्रकरण में की जायेगी ।
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रे कर्म तेरी गति न्यारी...
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