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दामाद का गला पतला था....अत: फाँसी का फंदा फिट नही हो रहा था। पोपाबाई ने जल्लादों को हुक्म दिया कि किसी मोटेतगड़े आदमी को खोज निकालो। खा-पीकर मस्त बना हुआ चेला हाथ आया। पोपाबाई ने उससे उसकी अन्तिम इच्छा पूछी। उसने सोच-विचार कर अपने गुरु से मिलने की इच्छा प्रकट की। गुरुजी मिले तो वह उनके पाँवों में गिरकर माफी माँगने लगा....खूब रोया....बचने का उपाय पूछा। तब गुरुजी ने उसके कान में उपाय बताया।
फाँसी का टाइम हुआ और गुरुजी भी आ पहुँचे। गुरुजी कहते हैं....अब श्रेष्ठ मुहूर्त आया है, मरने वाला सीधा वैकुण्ठ में जाता है, इसीलिये मुझे फाँसी पर लटकाओ...चेला कहता है'इसीलिये तो मैं भी कहता हूँ, मुझे फाँसी पर लटकाओ' गुरुजी की यह युक्ति थी।
पोपाबाई ने कहा कि 'आप तो दोनों महात्मा है....साधक है....आपको तो वैसे ही वैकुण्ठ मिल जायेगा.... Seat Reserved है....अत: मेरे जैसी पापिनी को चढ़ने दीजिये ताकि सीधा वैकुण्ठ मिल जाये।'
इस तरह पोपाबाई की रामकथा एक ट्रेजेडी बन गई। पोपाबाई को फाँसी पर चढ़ना पड़ा।
जीवात्मा कई बार हँसते-हँसते भी मन, वचन और काया से चिकने कर्मों को बाँधती है। आजकल तो लाफिंग क्लबें चलने लगी है। हँसते-हँसते बाँधे हुए कर्म आठ-आठ आँसू गिराने पर भी नहीं छूटते हैं। 'कडाण कम्माण ण अत्थि मोक्खो' किये हुए कर्म भुगते बिना मुक्त नहीं हो सकते हैं।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 52
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