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के वैर खमाते-खमाते शुभ अध्यवसाय की श्रेणी पर चढ़ने लगा और शुक्ल-ध्यान पर आरूढ़ होकर घातिकर्मों का संपूर्ण नाश करते हुए क्षमा के आधार पर केवलज्ञान को प्राप्त हुआ । यह है प्रायश्चित्त की निर्मल गंगा में स्नान करने का फल ! यह है पापों को धोने की सही प्रक्रिया !
उपर्युक्त दृष्टांत में हमने देखा कि कर्म के चिंतन से अपार कष्ट और प्रतिकूल दशा में भी झांझरिया मुनि अपने आप को सुंदर समाधि में रख पाये, चूँकि कर्म के विपाक विचय नाम का धर्मध्यान आता है। धर्म-ध्यान से क्षपकश्रेणि पर चढ़ा जाता है। तदन्तर जीव को शुक्लध्यान आता है और उससे फिर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है और केवलज्ञान होने के बाद शेष चार अघातिकर्म रहते हैं। उनका भी नाश होने पर जीव का मोक्ष हो जाता है। किसी भी बिचौलिये प्रदेश का स्पर्श न कर एक ही समय में जीव सिद्धशिला के प्रदेश में पहुँच जाता है।
कितना अद्भुत माहात्म्य है कर्मवाद का !
अब हम कर्मबंध और उसके भेद - प्रभेदों का आगे विचार करेंगे ।
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रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /39
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