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प्रश्न - मोक्ष में गये हुए जीवों को कर्मबंध होता है या नहीं?
उत्तर - मोक्ष में गए हुए जीवों को कर्मबंध नहीं होता है। यद्यपि वहाँ पर जीव भी है और कामर्णवर्गणा भी है...फिर भी वहाँ उस जीव में कर्मबंध के पाँचों कारण या उनमें से किसी एक का भी नामोनिशान नहीं है, अत: वहाँ पर जीव कर्मों से लिप्त बनता नहीं है।
प्रश्न - कर्मबंध के लिये मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पाँचों कारण आवश्यक है क्या?
उत्तर - जरूरी नहीं...! जिन आत्माओं को चार घाति कर्मों के संपूर्ण क्षय से केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है, वे तेरहवें सयोगि गुणस्थान पर होते हैं....उनका जो कर्मबंध होता है वह सिर्फ योग से ही। व्याख्यान देना....विहार करना आदि शुभ योग ही है, अत: उन्हें शातावेदनीय कर्म का ही बंध होता है।
दसवें गुणस्थानक पर कषाय और योग का अस्तित्व होता है, अत: वेदनीय आदि छ: कर्मों का बंध होता है। उसी प्रकार नीचे-नीचे के गुणस्थानकों में यथासंभव मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग के निमित्त से कर्मबन्धन होता है।
प्रश्न - मोक्ष में आत्माओं को योग = मन, वचन एवं काया की क्रिया तो होती नहीं, फिर वे हमेंशा कैसे रहते हैं ?
उत्तर - वे हमेंशा एक-सी अवस्था में रहते हैं। उनकी सादि जिसका प्रारम्भ हो और अनंत = जिसका कभी नाश न हो, वैसी स्थिति होती है....इसीलिये तो परमात्मा के आगे हम गद्गद् होकर गाते हैं।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /42
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