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न्याय-वैशेषिकादि दर्शनों की मान्यता थी कि मिट्टी के परमाणु मिट्टी के ही रहेंगे.....पानी के परमाणु पानी के ही और हवा के परमाणु हवा के ही....।
जब की जैन दर्शनकारों ने आज से ढाई हजार साल पहले और उससे भी पूर्व असंख्यात वर्षों से....अनगिनत काल से इसी बात की बराबर पुष्टि की है कि जैसे मिट्टी एक है और उसके आप कई रूप बना सकते हैं....मटके-मटकियाँ-शकोरे, वैसे ही परमाणु तो सभी पुद्गलास्तिकाय के ही है....कभी वे मिट्टी का रूप धारण करते हैं तो कभी-कभार वे ही परमाणु पानी के रूप में या हवा के रूप में भी पाये जा सकते हैं....।।
आज का विज्ञान कहता है.... H,O=Water पानी का मतलब है, दो गैसों का सम्मिश्रण यानि हवा से पानी बन सकता
है।
पानी को पुन: गैस बनाया जा सकता है.... इस तरह अब तो विज्ञान भी यह मानने लगा है.....परमाणुओं के सही मात्रा के विविध मिश्रणों से कई चीजें पैदा की जा सकती है।
यह तो हुआ जैन-जैनेतर दर्शन के परमाणुवाद का समीक्षण। अब हम परमाणु की सही व्याख्या के आधार पर जैन-दर्शन और विज्ञान के परमाणुवाद की निष्पक्ष 'शॉर्ट एण्ड स्वीट' समीक्षा प्रस्तुत करेंगे।
परमाणुकीव्याख्या-समीक्षा
केवलज्ञानी की दृष्टि से अविभाज्य एक के दो न हो सके वैसे छोटे से छोटे पुद्गल के अंश को परमाणु कहते हैं।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /24
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