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इस दुनिया में जितने भी परमाणु के जथ्थे रूप स्कंध हैं....या उन स्कंधों से बनी कोई भी चीज है, वह सब पुद्गलास्तिकाय है.....परमाणु भी पुद्गल ही है।
पुद्गलास्तिकाय का संक्षिप्त नाम पुद्गल है। 'पूरनात् गलनाच पुद्गलम्' अर्थात् जिसका पूरण-जुड़ने से वृद्धि-संपूर्ति और गलन बिछुड़ने से विनाश होता हो...ह्रास होता हो...ऐसा जिसका स्वभाव हो, वह पुद्गल कहलाता है।
आज के युग में अणुविज्ञान काफी विकसित हुआ है....ऐसा जोर-शोर से कहा जा रहा है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि पानी की एक बूंद में 10,000,000,000, 000,000,000 (एक के ऊपर 19 बिंदियाँ) जितने अणु रहे हुए हैं....
* जर्मन वैज्ञानिक सर एन्ड्रज कहते हैं कि 29 ग्राम पानी के मोलेक्यूल्स (स्कंध) गिनने हो तो....तीन अरब लोग मिनट के तीन सौ की रफ्तार से यदि चालीस लाख वर्ष तक गिनते रहें तो गिने जायेंगे अर्थात् उतने मोलेक्यूल्स (स्कंध) 29 ग्राम पानी में
* आलपिन के सिरे के बराबर के बर्फ के टूकड़े में 1,000,000,000,000,000 (एक के ऊपर पन्द्रह बिन्दियाँ) जितने एटम्स-अणु हैं।
* एक घन इंच वायु में 442400,000,000,000,000,000 (4424 के ऊपर सत्रह बिन्दियाँ) जितने स्कंध हैं।
* एक बार हम श्वास लेते हैं उतने वायु में
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /22
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