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दूसरी विचारधारा
तो किन्हीं लोगों का मानना है कि ऐसी विषमताएँ भगवान के द्वारा उत्पन्न की जाती है, चूँकि भगवान ही सुख-दुःख के कर्ताहर्त्ता हैं.... जगन्नियंता सर्वशक्तिमान व्यापक विभु हैं। यह भी विचारधारा जँचती नहीं है, क्योंकि अनंत करूणा के स्वामी, वात्सल्य के सागर परमपिता परमेश्वर एक को सुखी और दूसरे को दु:खी क्यों बनावें ? क्यों न सभी को सुखी बनाता ?
तीसरी विचारधारा
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जहाँ कार्य होता है, उसके पीछे अवश्यमेव कुछ न कुछ कारण होता है। इस वैश्विक सिद्धान्त के आधार पर इस नतीजे पर आते हैं कि जहाँ बाह्य कारण न भी दिखे तो भी आंतरिक कारण तो अवश्यमेव मानना चाहिये । कार्य और कारण (Cause and Effect) का सिद्धांत (Theory ) तो हर एक विचारशील मनुष्य स्वीकारता ही है। अतः उपर्युक्त विषमताओं का आंतरिक कारण ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों को मानना चाहिये और यह कर्मवाद का सिद्धांत सर्वज्ञ ऐसे तीर्थंकर परमात्मा द्वारा प्ररूपित है...!
पोल ब्रंटन (Paul Brunton) का मत - आधुनिक जगत के प्रसिद्ध लेखक पॉल ब्रंटन ने अपनी पुस्तक 'टीचिंग बियोंड दी योग (Teaching Beyond the Yoga)' में लिखा है कि कर्म सिद्धांत ईशु के उपदेशों में से निकाल दिया गया, अब उसकी पुन: प्रतिष्ठा करनी चाहिये। यह कार्य आज के युग की परिस्थिति को देखकर अत्यन्त आवश्यक लग रहा है। युग की इस माँग को देखकर विचारकों को विवश होकर भी इस ओर दो कदम बढ़ाने चाहिये । पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत राष्ट्र को स्वावलम्बी बनाता है। इन दोनों
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 16
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