Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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प्रस्तावना
११
में ढाल कर यह नवीन रूप दिया है । इस ग्रन्थ में अनेक आध्यात्मिक ग्रन्थों का सार है । इसके अन्तस्तल में प्रवेश करने पर प्रतीत होता है कि कवि ने वेदान्त और उपनिषदों का अध्ययन भी किया है तथा अध्ययन से प्राप्त ज्ञान का उपयोग जैन मान्यताओं के अनुसार आठवें, नौवें और दसवें पद्य में किया है । अपराजित शतक में कई स्थानों पर वेदान्त का स्पष्ट वर्णन किया। है। कवि की इस शतकत्रयी को देखने से प्रतीत होता है कि संसार, आत्मा और परमात्मा का अनुभव इसने
अच्छी तरह किया है ।
इसके प्रत्येक पद्य में श्रात्मरस छलकता
है,
श्रात्मज्ञान पिपासुओं को
इससे बड़ी शान्ति मिल सकती है । अकेले रत्नाकर शतक के अध्ययन से अनेक आध्यात्मिक ग्रन्थों का सार ज्ञात हो जाता है ।
रत्नाकर शतक का अध्यात्मवाद निराशावाद नहीं है । संसार से घबड़ा कर उसे नश्वर या क्षणिक नहीं बताया गया है, बल्कि वस्तुस्थिति का प्रतिपादन करते हुए श्रात्मस्वरूप का विवेचन किया है। संसार के मनोज्ञ पदार्थों के अन्तरंग और बहिरंग रू का साक्षात्कार कराते हुए उनकी बीभत्सता दिखलायी है। श्रात्मा, के लिये अपने स्वरूप से भिन्न शरीर, स्त्री, पुत्र, धन, धान्य, पुरजन, परिजन सभी हेय हैं । ये संसार के पदार्थ बाहर से ही मोह के कारण सुन्दर दिखलायी पड़ते हैं, मोह के दूर होने पर इनका वास्तविक रूप सामने आता है; जिससे इनकी घृणित
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