Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
आत्मा का वास्तविक स्वरूप है, यह श्रात्मा से भिन्न नहीं है क्रोधादि कषायें, वासनाएँ तथा अन्य विकार श्रात्मा के स्वरूप नह हैं; क्योंकि ये सब परिवर्तन शील हैं। जो आत्मा का स्वभाव होत है, वह सदा विद्यमान रहता है अथवा किसी न किसी अंश के अवश्य पाया जाता है । अतः विकार आदि आत्मा के स्वभाव नहीं, किन्तु विभाव हैं । इन विभावों के यथार्थ रूप को समभ कर वैसा श्रद्धान करना तथा श्रात्मस्वरूप का श्रद्धान करना
सम्यग्दर्शन है ।
मनोविज्ञान बतलाता है कि मानव
की अनन्त शक्तियों में
श्रद्धा या संकल्प की शक्ति प्रधान है । जब तक विश्वास या संकल्प किसी कार्य का नहीं होता तब तक उसमें सफलता नहीं मिल सकती है। क्योंकि संकल्प या श्रद्धा के दृढ़ होने पर ही मनुष्य काम, क्रोध आदि कुभावनाओं से बच सकता है। कोई भी लौकिक या पारलौकिक कार्य श्रद्धा या विश्वास के बिना सम्पन्न नहीं हो सकता । आत्मकल्याण के लिये सहायक सम्यक द्धा या सम्यकू विश्वास है, कवि ने इसीका नाम सम्यग्दर्शन कहा है । यह आत्मा स्वभावसे ज्ञाता, द्रष्टा, श्रानन्दमय एवं अनन्त शक्तियों से युक्त है, इसका इसी रूप में विश्वास करना सम्यग्दर्शन है।
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