Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
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आतध्यान है। भविष्य काल में भोगों की प्राप्ति की आकांक्षा को मन में बार-बार लाना निदानज नाम का चौथा आर्तध्यान है। __ हिंसा, झूठ, चोरी, विषयसंरक्षण-विषयों में इन्द्रियों की प्रवृत्ति इन चार के सम्बन्ध में चिन्तन करने से रौद्र ध्यान होता है। इस ध्यान के भी चार भेद हैं-जीवों के समूह को अपने तथा अन्य द्वारा मारे जाने पर, पीड़ित किये जाने पर एवं कष्ट पहुँचाये जाने पर जो चिन्तन किया जाता है या हर्ष मनाया जाता है उसे हिंसान्द नामक रौद्रध्यान कहते हैं। यह ध्यान निर्दयी, क्रोधी, मानी, कुशील सेवी, नास्तिक एवं उद्दीप्त कषायवाले के होता है। शत्रु से बदला लेने का चिन्तन करना, युद्ध में प्राणघात किये गये दृश्य का चिन्तन करना एवं किसीको मारने, पीटने, कष्ट पहुँचाने आदि के उपायों का विचार करना भी हिंसानन्द नामक रौदध्यान है। इस ध्यानवाले के परिणाम सर्वथा हिंसक रहते है। इसलिये इस ध्यानवाला नरकगामी होता है। ___झूठी कल्पनाओं के समूह से पापरूपी मैल से मलिन चित्त होकर जो कुछ चिन्तन करता है, वह मृषानन्द रौद्रध्यान कहलाता है। मैं अपनी असत्य की चतुराई के प्रभाव से नाना प्रकार से धन ग्रहण करूँगा, ठगविद्या के प्रभाव से अपने कार्य की सिद्धि कर लूँगा, दुश्मनों को धोखा देकर अपने आधीन कर लूंगा,
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