Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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रत्नाकर शतक
कर्मबन्ध को करता ही रहता है। अधातिया कर्मों में पुण्य और पाप दोनों ही प्रकार की प्रकृतियाँ होती हैं ! ___ जीव की ओर आकृष्ट होनेवाले कर्म परमाणुओं में प्रारंभ से लेकर अन्त तक मुख्य दश क्रियाएँ-अवस्थाएँ होती हैं। इनके नाम बन्ध, उत्कर्षण, अपकर्षण, सत्ता, उदय, उदीरणा संक्रमण, निधति और निकाचना हैं।
बन्ध-जीव के साथ कर्म परमाणुओं का सम्बद्ध होना बन्ध है। इसके प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग ये चार भेद हैं। यह सब से पहली अवस्था है, इसके बिना अन्य कोई अवस्था कमों में नहीं हो सकती है।
इस प्रथम अवस्था में कर्म बन्ध होने के पश्चात् योग और कषाय के कारण चार बातें होती हैं। प्रथम ज्ञान, सुख आदि के पातने का स्वभाव पड़ता है, द्वितीय स्थिति -काल मर्यादा पड़ती है कि कितने समय तक कर्म जीव के साथ रहेगा। तृतीय कर्मों में फल देने की शक्ति पड़ती है और चतुर्थ वे नियत तादाद में ही जीव से सम्बद्ध रहते हैं। इन चारों के नाम क्रमशः प्रकृतिबन्ध-स्वभाव पड़ना, स्थितिबन्ध ----काल मर्यादा का पड़ना, अनुभागबन्ध- फलदान शक्ति का होना और प्रदेशबन्ध-नियत परिमाण में रहना है। अनुभागबन्ध की अपेक्षा कर्मों में अनेक
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