Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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रत्नाकर शतक
धर्म नष्ट होने पर कभी नहीं मिलेगा। अतः रत्नत्रय की प्राप्ति के लिये शरीर से मोह छोड़कर समाधि ग्रहण करनी चाहिये । ___ मरना तो संसार में निश्चित है, किन्तु बुद्धिमानी पूर्वक सावधान रहते हुए मरना कठिन है। कषायवश विष खा लेना, अग्नि में जल जाना, रेल के नीचे कट जाना, नदी में डूब जाना.
आदि कार्य निद्य हैं, ऐसे कार्यों से मरने पर प्रात्मा की भलाई नहीं होती है। जो ज्ञानी पुरुष मरण के सन्मुख होते हुए निष्कषाय भाव पूर्वक शरीर का त्याग करते हैं, उनका ज्ञानपूर्वक मन्दकषाय सहित मरण होने से वह मरण मोक्ष का कारण होता है। ___ समाधि मरण दो प्रकार से होता है-सविचार पूर्वक और अविचार पूर्वक। जब शरीर जर्जति हो जाय, बुढ़ापा आ जाय, दृष्टि मन्द हो जाय, पाँव से चला न जाय, असाध्य रोग हो जाय या मरण काल निकट आ जाय तो शरीर और कषायों को कृश करते हुए अन्त में चार प्रकार के आहार का त्याग कर धर्मध्यान सहित मरण रकना सविचार समाधि मरण है। इस समाधि मरण का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है। वृद्धावस्था तक संसार के सभी भोगों को भोग लेता है, सांसारिक इन्द्रिय जन्य सुखों का आस्वादन भी कर लेता है तथा शक्ति अनुसार
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