Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 176
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकर शतक १३३ के बड़े-बड़े राष्ट्र अपनी लपलपाती जिह्वा निकाले दूसरे छोटे राष्ट्रों को हड़पने की चिन्ता में क्यों हैं ? अतः भूख तो आत्मा को अवश्य लगती होगी। इस शंका का उत्तर यह है कि वास्तव में आत्मा को भूख नहीं लगती है, यह तो सर्वदा क्षवा, तृषा आदि की बाधा से परे है। तब क्या भूख शरीर को लगती है ? यह भी ठीक नहीं । मरने पर शरीर रह जाता है, पर उसे भूख नहीं लगती ! अतः शरीर को भूख लगती है, यह भी ठीक नहीं जंचता। अब प्रश्न यह है कि भूख वास्तव में लगती किसे है ? विचार करने पर प्रतीत होता है कि मनुष्य के शरीर के दो हिस्से हैं-एक दृश्य दूसरा अदृश्य । दृश्य भाग तो यह भौतिक शरीर ही है और अदृश्य भाग आत्मा है। इस शरीर में प्रात्मा का आबद्ध होना ही इस बात का प्रमाण है कि आत्मा में विकृति आ गयो है, इसकी अपनी शक्ति कर्मों के संस्कारों के कारण कुछ आच्छादित हैं। इसके आच्छादन का कारण कवल भौतिक ही नहीं है और न आध्यात्मिक। मूल बात यह है कि अनन्त गुणवाली आत्मा में अनन्त शक्तियाँ हैं। इन अनन्त शक्तियों में एक शक्ति ऐसी भी है, जिससे पर के संयोग से यह विकृत परिणमन करने लगती है। राग-द्वष इसी विकृत परिणति के परिणाम For Private And Personal Use Only

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