Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रत्नाकर शतक
१४५
महत्त्व है। अतः साधक को सदा अपनी अपरिमित शक्ति पर विश्वास होना चाहिये। उसे इन्द्रियों की वासना को बिल्कुल छोड़ देना चाहिये । इन्द्रियाँ, मनबल, वचनबल, कायबल, श्वासोच्छ्वास और आयु ये द्रव्य प्राण शाश्वत ज्ञान, आनन्द, अनन्त शक्ति आदि भावप्राणों से बिल्कुल भिन्न हैं। आत्मा पुण्य पाप से भिन्न है, कर्मों का सम्बन्ध इसके साथ नहीं है। आस्रव, बन्ध और संवर आत्मा के नहीं होते हैं, किन्तु यह प्रास्रव
और संवर तत्त्वों का ज्ञाता है। इस प्रकार शरीर से मोह दूर कर आत्मिक ज्ञान को जाग्रत करना चाहिये ।
इदनादवने समंतु बरिस नूरोंदहं क्रोटियिं । हिंदत्तत्तलनेककोटियुगदिदत्तत्तलंभोधियिं ॥ वंदत्तत्तलनादि कालदिननंताकारदि तिरेनन् ।
वंदें नोंदेननाथवंधु ! सलहो रत्नाकराधीश्वरा ! ॥२२॥ हे रत्नाकराधीश्वर !
मैं जैसा इस समय शरीरधारी हूं वैसा अनादिकाल से इस संसार में शरीर धारण करता आ रहा हूँ। आवागमन का चक्र घड़ी के चक्र के समान निरन्तर चल रहा है। हे भगवन ! आप दीन-बंधु हैं, श्राप मेरी रक्षा करें ! ॥ २२॥
विवेचन---जैन सिद्धान्त के अनुसार ईश्वर सृष्टि का कर्ती
For Private And Personal Use Only