Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 181
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३. विस्तृत विवेचन सहित रक्त से आनन्द का अनुभव करता है, उसी प्रकार यह विषयी जीव भी विषयों में अपनी शक्ति को लगाकर आनन्द का आस्वादन करता है। आनन्द पर पदार्थों में नहीं है यह तो आत्मा का स्वरूप है, जब इसकी अनुभूति हो जाती है, स्वतः आनन्द की प्राप्ति हो जाती है। विषय तृष्णा से इस जाव को अशान्ति के सिवाय और कुछ नहीं मिल सकता है, यह जीव अपने रत्नत्रय----सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकूचारित्र को भूलकर मदोन्मत्त हाथी के समान विषयों की ओर झपटता है। एक कवि ने इन्द्रियजन्य सुखों का वर्णन करते हुए बताया है कि ये विषय प्रारम्भ में बड़े सुन्दर म म होते हैं, इनका रूप बड़ा ही लुभावना है, जिसकी भी दृष्टि इनपर पड़ती है वहा इनका ओर आकृष्ट हो जाता है. पर इनका परिणाम हलाहल विष के समान होता है । विष तत्क्षण मरण कर देता है, पर ये विषय सुख तो अनन्त भवों तक संसार में परिभ्रमण कराते हैं। इनका फल इस जीव के लिये अत्यन्त अहितकर होता है। इसी बात को बतलाते हुए कहा है--- आपातरम्ये परिणामदुःखे सुखे कथं वैषयिके रतोऽसि । जडाऽपि कार्य रचयन् हितार्थी करोति विद्वान् यदुदर्कतर्कम् ।। इससे स्पष्ट है कि वैषयिक सुख परिणाम में दुःखकारक होता For Private And Personal Use Only

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