Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रत्नाकर शतक Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को खींच लेती हैं । इन्द्रियों को संचालित इसी के आधीन होकर इन्द्रियों की विषयों में भोजन, गायन-वादन, सुगन्ध लेपन, मनोहर निरीक्षण, सुन्दर सुगन्धित लेपन ये मन की विषय- जन्य भूख इन्द्रियों के मन को जीतना सबसे आवश्यक है । For Private And Personal Use Only १४१ करनेवाला मन है, प्रवृत्ति होती है। अंगनाओं का सब मन की ही माँगे हैं । द्वारा पूरी की जाती है, अतः मन की विषयों में गति - प्रति सेकण्ड एक अरब-तीन मील से भी अधिक है, यह सबसे तेज चलने वाला है । प्रत्येक रमणीक पदार्थ के पास, आसानी से पहुँच जाता है । जब तक जीव इन्द्रियों और मन के अधीन रहता है, तब तक यह निरन्तरं भ्रान्तिमान सुखों के लिये भटकता रहता है । कविवर बनारसीदास ने इन्द्रिय-जन्य सुखों के खोखलेपन का बड़ा ही सुन्दर निरू किया है ये ही हैं कुमति के निदानी दुखदोष दानी; इन ही की संगतिसों संग भार बहिये । इनकी भगनतासों विभोको विनाश होय, इनही की प्रीति स नवीन पन्थ गहिये | ये ही तन भाव को बिदारै दुराचार धारें, इन ही की तपत विवेक भूमि दहिये ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195