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रत्नाकर शतक
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को खींच लेती हैं । इन्द्रियों को संचालित इसी के आधीन होकर इन्द्रियों की विषयों में भोजन, गायन-वादन, सुगन्ध लेपन, मनोहर निरीक्षण, सुन्दर सुगन्धित लेपन ये मन की विषय- जन्य भूख इन्द्रियों के
मन को जीतना सबसे आवश्यक है
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करनेवाला मन है,
प्रवृत्ति होती है।
अंगनाओं का
सब मन की ही माँगे हैं । द्वारा पूरी की जाती है, अतः
मन की विषयों में गति - प्रति सेकण्ड एक अरब-तीन मील से भी अधिक है, यह सबसे तेज चलने वाला है । प्रत्येक रमणीक पदार्थ के पास, आसानी से पहुँच जाता है ।
जब तक जीव इन्द्रियों और मन के अधीन रहता है, तब तक यह निरन्तरं भ्रान्तिमान सुखों के लिये भटकता रहता है । कविवर बनारसीदास ने इन्द्रिय-जन्य सुखों के खोखलेपन का बड़ा ही सुन्दर निरू किया है
ये ही हैं कुमति के निदानी दुखदोष दानी;
इन ही की संगतिसों संग भार बहिये । इनकी भगनतासों विभोको विनाश होय, इनही की प्रीति स नवीन पन्थ गहिये | ये ही तन भाव को बिदारै दुराचार धारें, इन ही की तपत विवेक भूमि दहिये ।