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विस्तृत विवेचन सहित
ये ही इन्द्री सुभट इनहिं जीतै सोइ साध,
इनको मिलायी सो तो महापापी कहिये ॥ अर्थ-इन्द्रियों और मन की पराधीनता कुगति को ले जानेवाली है, दुःख और दोषों को देनेवाली है। जो व्यक्ति इनकी आधीनता कर लेता है–पञ्चेन्द्रियों के प्राधीन हो जाता है वह नाना प्रकार के कष्ट उठाता है। इन्द्रियों के विषयों में मग्न होने से प्रात्मा के गुण आच्छादित हो जाते हैं, व्यक्ति का वैभव लुप्त हो जाता है उसका सारा पराक्रम अभिभूति हो जाता है। इनसे-इन्द्रियों से प्रेम करने से अनीति के मार्ग में लगना पड़ता है। इन इन्द्रियों की आधीनता ही तप से दूर कर देती है, दुराचार की ओर ले जाती है, सन्मार्ग से विमुख कराती है। इन्द्रियों की श्रासक्ति ज्ञान रूपी भूमि को जला देती है, अतः जो इन इन्द्रियों को जीतता है, वही साधु है और जो इनके साथ मिल जाता है, इन्द्रियों के विषयों के आधीन हो जाता है, वह बड़ा भारी पापी है। इन्द्रियों की पराधीनता से इस जीव का कितना अहित हो सकता है, इसका वर्णन संभव नहीं। विवेकी जीवों को इन इन्द्रियों की दासता का त्याग कर स्वतन्त्र होने का यल करना चाहिये।
संसार में सबसे बड़ी पराधीनता इन इन्द्रियों की है। इन्होंने
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