Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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रत्नाकर शतक
करना चाहिये ।
समाधि मरण के लिये द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का भी ख्याल रखना चाहिये। जब समाधि-मरण ग्रहण करे उस समय मित्र, कुटुम्बी और अन्य रिश्तेदारों को बुलाकर उनसे क्षमा याचना करनी चाहिये। तथा स्वयं भी सबको क्षमा कर देना चाहिये । स्त्री, पुत्र,माता, पिता आदि के स्नेहमयी सम्बन्धी को त्याग कर रुपये, पैसे, धन-दौलत, गाय, भैंस, दास, दासी आदि से मोह दूर करना चाहिये । यदि कुटुम्बी मोहवश कातर हों तो साधक को उन्हें स्वयं उपदेश देकर समझाना चाहिये । संसार की अस्थिरता, वास्तविकता और खोखलापन बताकर उनके मोह को दूर करना चाहिये। उनसे साधक को कहना चाहिये कि यह आत्मा अमर है, यह कभी नहीं मरता है, इसका पर पदार्थों से कोई सम्बन्ध नहीं, यह नाशवान शरीर इसका नहीं है, यह अत्मा न स्त्री होता है, न पुरुष, न नपुंसक और न गाय होता है, न बैल। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। यह तो सब पौद्गलिक कर्मों का नाटक है, उन्हीं की माया है। मेरा श्राप लोगों के साथ इतना ही संयोग था सो पूरा हुआ। ये संयोग वियोग तो अनादिकाल से चले आ रहे हैं। स्त्री, पुत्र, भाई, आदि का रिश्ता मोहवश पर निमित्तक है, मोह के दूर होते ही इस
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