Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master

View full book text
Previous | Next

Page 170
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org करना । विस्तृत विवेचन सहित बातों का अवश्य त्याग कर देना चाहिये १ - जीवित आशसा -- मोहबुद्धि के कारण ऐसो वांधा करना कि यदि मैं अच्छा हो जाऊँ तो ठीक है, कुछ काल तक संसार के सुखों को और भोग लूँगा । धन, जन, आदि से परिणामों में आसक्ति रखना, उन पर ममता करना, जिससे जीवित रहने की लालसा जाग्रत हो । २ --- मरण आशंसा - रोग के कष्टों से घबड़ा कर जल्दी मरने की अभिलाषा करना । वेदना, जो कि पर जन्य है, कर्मों से उत्पन्न है, आत्मा के साथ जिसका कोई सम्बन्ध नहीं, अपनी समझ कर घबड़ा जाना और जल्दी मरने की भावना करना । ३ - मित्रानुराग - मित्र, स्त्री, पुत्र, माता, पिता, हितैषी तथा अन्य रिश्तेदारों की प्रीति का स्मरण करना, उनके प्रति मोह बुद्धि उत्पन्न करना | ४ - सुखानुबन्ध - पहले भोगे हुए सुखों का बारबार चिन्तन ५- - - निदानबन्ध धन-धान्य, वैभव की वांछा करना | को दूर कर समाधि ग्रहण करनी चाहिये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर भव में सांसारिक विषय भोगों को, इस प्रकार इन पाँचों दोषों For Private And Personal Use Only १२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195