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करना ।
विस्तृत विवेचन सहित
बातों का अवश्य त्याग कर देना चाहिये
१ - जीवित आशसा -- मोहबुद्धि के कारण ऐसो वांधा करना कि यदि मैं अच्छा हो जाऊँ तो ठीक है, कुछ काल तक संसार के सुखों को और भोग लूँगा । धन, जन, आदि से परिणामों में आसक्ति रखना, उन पर ममता करना, जिससे जीवित रहने की लालसा जाग्रत हो ।
२ --- मरण आशंसा - रोग के कष्टों से घबड़ा कर जल्दी मरने की अभिलाषा करना । वेदना, जो कि पर जन्य है, कर्मों से उत्पन्न है, आत्मा के साथ जिसका कोई सम्बन्ध नहीं, अपनी समझ कर घबड़ा जाना और जल्दी मरने की भावना करना ।
३ - मित्रानुराग - मित्र, स्त्री, पुत्र, माता, पिता, हितैषी तथा अन्य रिश्तेदारों की प्रीति का स्मरण करना, उनके प्रति मोह बुद्धि उत्पन्न करना |
४ - सुखानुबन्ध - पहले भोगे हुए सुखों का बारबार चिन्तन
५- - - निदानबन्ध
धन-धान्य, वैभव की वांछा करना | को दूर कर समाधि ग्रहण करनी चाहिये ।
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पर भव में सांसारिक विषय भोगों को,
इस प्रकार इन पाँचों दोषों
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