________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२६
रत्नाकर शतक
समय तक बारह भावनाओं के स्वरूप का चिन्तन करे, संसार के स्वार्थ, मोह, संघर्ष आदि का स्वरूप विचारे ।
बैठने की शक्ति न रहने पर लेट जाय और मन, वचन, काय को स्थिर कर समाधिमरण में दृढ़ करनेवाले श्लोकों का पाठ करे तथा अन्य लोगों के द्वारा पाठ किये गये श्लोकों को मन लगाकर सुने। जब बिल्ककुल शक्ति घट जाय तो केवल णमोकार मंत्र का जाप करता हुआ पंच परमेष्ठी के गुणों का चिन्तन करे।
समाधिमरण में शय्या, संयम के साधन उपकरण, आलोचना, अन्न और वैयावृत्त सम्बन्धी इन पाँच बहिरंग शुद्धियों को तथा दर्शन, ज्ञान, चारित्र, विनय और सामायिकादि षट् आवश्यक सम्बन्धी इन पाँच अन्तरंग शुद्धियों को पालना आवश्यक है। समाधिमरण करनेवाले के पास कोई भी व्यक्ति सांसारिक चर्चा न करे । साधक को समाधि में दृढ़ करनेवाली वैराग्यमयी चर्चा ही करनी चाहिये। उसके पास रोना, गाना, कोलाहल करना आदि का पूर्ण त्याग कर देना आवश्यक है । ऐसी कथाएँ भी साधक को सुनानी चाहिये जिनके सुनने से उसके मन में समाधि मरण के प्रति उत्साह, स्थिरता और आदर भाव पैदा हो । समाधिमरण धारण करनेवाले को दोष उत्पन्न करनेवाली पाँच
For Private And Personal Use Only