Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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रत्नाकर शतक
१२६
विवेचन-आत्मा चेतन है और संसार के सभी पदार्थ अचेतन । चेतन श्रात्मा का अचेतन कर्मों के साथ सम्बन्ध होने से यह संसार चल रहा है। इस शरीर में दस प्राण बताये गये हैं-- पाँच इन्द्रियाँ-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र, तीन बल—मनोरल, बचनबल और कायबल आयु एवं श्वासोच्छ्वास। मूलतः प्राण दो प्रकार के हैं-द्रव्यप्राण और भावप्राण। द्रव्यप्राण उपर्युक्त दस हैं, भावप्राण में आत्मा की विभाव परिणति से उत्पन्न पर्यायें हैं । जो व्यक्ति इन प्राणों के सम्बन्ध में न विचार कर पंचपरमेष्ठी के गुणों का स्तवन, आत्मस्वरूप चिन्तन, रत्नत्रय के सम्बन्ध में विचार करता है, वह अपने स्वरूप को पहचान सकता है।
भगवान् के गुणों के स्मरण से अात्मा की पूत भावनाएँ उदबुद्ध हो जाती हैं। छुपी हुई प्रवृत्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं तथा पर पदार्थों से मोह बुद्धि कम होती है। तीर्थंकर भगवान के पञ्च कल्याणकों का निरन्तर स्मरण करने से उनके पन्यातिशय का स्मरण आता है तथा विकार और वासनाएँ जो आत्मा को विकृत बनाये हुये हैं, उनसे दूर होने की प्रवृत्ति जाग्रत होती है। प्रवृत्तिमार्ग में लगनेवाले साधक को शुभ प्रवृत्तियों में रत होना चाहिये। अशुभ प्रवृत्तियाँ बन्धन को दृढ़ करती हैं।
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