Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विस्तृत विवेचन सहिन
१२३
धर्म भी करता रहता है। जब शरीर असमर्थ हो जाय जिससे धर्म साधन न हो सके तो शान्त भाव से विकारों और चारों प्रकारके श्राहारों को त्याग कर मरण करे। मरते समय शान्त, अविचल और निर्लिप्त रहने की बड़ी भारी आवश्यकता है। मन में किसी भी प्रकार की वासना नहीं रहनी चाहिये, बासना रह जाने से जीव का मरण ठीक नहीं होता है।
अचानक मृत्यु आजाय जैसे ट्रेन के उलट जाने पर, घर में भाग लग जाने पर, मोटर दुर्घटना हो जाने पर, साँप के काट लेने पर ऐसा संयोग आजाय जिससे शरीर के स्वस्थ होने का कोई भी उपगर न किया जा सके तो शरीर को तेल रहित दीपक के समान स्वयं ही विनाश के सम्मुख आया जाना संन्यास धारण करे। चार प्रकार के आहार त्याग कर पंच परमेष्ठी के स्वरूप तथा आत्म ध्यान में लीन हो जाय। यदि मरण में किसी प्रकार का सन्देह दिखलायी पड़े तो ऐसा नियम कर ले कि इस उपसर्ग से मृत्यु हो जाय तो मेरे आत्मा के सिवाय समस्त पदार्थों से ममत्व भाव का त्याग है, यदि इस उपसर्ग से बच गया तो पूर्ववत् आहार-पान, परिग्रह आदि ग्रहण करूँगा। इस प्रकार नियम कर शरीर से ममत्व छोड़, शान्त परिणामों के साथ किसी भी प्रकार की वाच्छा से रहित हो शरीर का त्याग
For Private And Personal Use Only